पाकिस्तान के बलोचिस्तान में इन दिनों सरकार के खिलाफ गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्वादर में बलोच एक्टिविस्ट महरंग बलोच ने विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व संभाल लिया है। पाकिस्तानी प्रशासन उन्हें हटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक नाकाम रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पाकिस्तान की सरकार बंदूकों और धमकियों के ज़रिए उन्हें दबाना चाहती है, लेकिन वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। उनका आरोप है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर बलोचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा जमाने की साज़िश कर रहे हैं।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंदोलन वैसा ही रूप ले सकता है जैसा कभी पूर्वी पाकिस्तान में देखा गया था, जिसने अंततः बांग्लादेश को जन्म दिया। इसी विषय पर पाकिस्तानी पत्रकार कमर चीमा ने बैरिस्टर हामिद बशानी से बातचीत की।
🔹 महिलाओं की अगुवाई में आंदोलन
बैरिस्टर हामिद बशानी ने कहा कि बलोचिस्तान में परिवर्तन की एक नई लहर चल रही है। अब यहां महिलाओं और युवाओं को आंदोलन की अगुवाई में आगे किया जा रहा है, जिससे एक “सॉफ्ट लेकिन प्रभावशाली” नेतृत्व उभर रहा है। उन्होंने कहा,
“बलोचिस्तान की कई छात्राओं ने अपने अधिकारों की आवाज़ उठाई — कुछ मारी गईं, कुछ गिरफ्तार हुईं, लेकिन संघर्ष जारी है। यह नया नहीं, बल्कि लगातार चल रही जद्दोजहद का हिस्सा है।”
🔹 सरकार पर भरोसा क्यों नहीं
बशानी के अनुसार, पाकिस्तान में आम लोगों का सरकार से विश्वास उठ चुका है। उन्होंने कहा,
“सरकार अक्सर प्रदर्शनकारियों से बातचीत में वादे तो कर लेती है, लेकिन बाद में पलट जाती है। बलोच केवल अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं, न कि देश तोड़ने की। लेकिन सत्ता उन्हें अलगाववादी ठहराने की कोशिश करती है।”
🔹 हथियार उठाने की मजबूरी
कमर चीमा ने सवाल किया कि बलोच आंदोलन में कई प्रदर्शनकारियों के परिवार हथियारबंद क्यों हैं। इस पर बशानी ने कहा,
“बलोचिस्तान में कोई भी सरकार सेना की मंजूरी के बिना नहीं चलती। ऐसे में संवाद का रास्ता बंद हो जाता है। जब बातचीत से कुछ नहीं मिलता और जिनसे बात होती है, उन्हें बाद में मार दिया जाता है — तो लोग हथियार उठाने को मजबूर हो जाते हैं।”
🔹 क्या दोहराया जाएगा बांग्लादेश वाला इतिहास?
बशानी ने कहा,
“अगर बलोचिस्तान को इतनी आज़ादी दी जाए कि वह अपने फैसले खुद ले सके, तो कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन पाकिस्तान की सरकार को डर है कि अगर असली प्रतिनिधि संसद में पहुंचे, तो वे फैसले करेंगे जो सत्ता को पसंद नहीं आएंगे। यही गलती पहले पूर्वी पाकिस्तान में हुई थी — जब जनता के अधिकारों को नकार दिया गया, तो देश टूट गया।”


