दिल्ली में वादे पूरे नहीं कर पाई, अब पंजाब में मुफ्त का लॉलीपॉप दिखा जनता को धोखा दे रही AAP: जानिए कैसे

पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सियासी सरगर्मियाँ काफी बढ़ गई हैं। हर पार्टी अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे कर रही हैं। इसी क्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind kejriwal) भी लोगों को मुफ्तखोरी (Freebies) का लॉलीपॉप दिखा रहे हैं।

हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केजरीवाल ने रैलियों में वादा किया कि अगर 2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जीतती है तो वे पंजाब के हर घर में 300 यूनिट फ्री बिजली देंगे और हर पंजाबी महिला को उसकी आर्थिक स्थिति या जरूरत देखे बिना मुफ्त पैसे दिए जाएँगे। केजरीवाल के अनुसार, उनकी पार्टी दिल्ली में 200 यूनिट फ्री बिजली दे रही है।

दिलचस्प बात यह है कि जब से दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बनी है तब से तो उनके फ्री बाँटने के मामलों में अभूतपूर्व तरीके से तेजी देखने को मिली है। आम आदमी पार्टी तो दिल्ली में महिलाओं के लिए मुफ्त बिजली से लेकर बस यात्रा भी फ्री करने की घोषणा कर चुकी है। उल्लेखनीय है कि चुनावों को लेकर की गई इस तरह की घोषणाएँ कभी भी समझदारी भरी नहीं होती। इन नीतियों से दूरदर्शिता की कमी हमेशा परिलक्षित होती है।

दरअसल, आम आदमी पार्टी जनता के लिए लाई गई रेगुलर योजनाओं का क्रियान्वयन करने में विफल रही है। ऐसे में पार्टी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देकर अपनी कमियों को ढँकने की कोशिश कर रही है, ताकि जनता में अपनी मौजूदगी दर्ज करा सके। अगर सही तरीके से अगर योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया होता तो उसे मुफ्तखोरी का सहारा नहीं लेना पड़ता।

AAP लगातार मुफ्त बिजली देने के अपने वादे का प्रचार कर रही है, लेकिन यहाँ हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि किस तरह के आम आदमी पार्टी की कुछ नीतियाँ देश को नुकसान पहुँचा रही हैं।

विद्युत कंपनियाँ गंभीर समस्याओं से जूझ रही हैं

भारत में विद्युत उत्पादक कंपनियों का बुरा हाल है। ये कंपनियाँ सामान्यतया दो कारकों के कारण समस्याग्रस्त हैं। पहला ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन (T&D) के नुकसान को कम न कर पाना और दूसरा है बढ़ते खर्चों को पूरा करने के लिए कीमतें बढ़ाना। ये दोनों देश भर के घरों को प्रभावित कर सकते हैं, क्योंकि राज्यों के पास ये अधिकार है कि वो टैरिफ बढ़ा सकते हैं। इसी मुफ्तखोरी के कारण 2019-20 में कंपनियों के राजस्व में 3,000 करोड़ रुपए की कमी आई थी, जिसके कारण दिल्ली में बिजली कंपनियों ने नियामक डीईआरसी से अनुरोध किया था कि लागत आधारित एक क्रमिक दर लागू की जाए।

अपनी इन मुफ्त की योजनाओं के बचाव में केजरीवाल ये तर्क देते हैं कि राज्य के नागरिक के तौर पर लोगों को सरकार से मुफ्त की सेवाएँ लेने का अधिकार है। वो ऐसा करके लोगों को धोखा देते हैं, क्योंकि बहुत ही गुप्त तरीकों से इसका सारा भार जनता पर डाल दिया जाता है, जबकि इन योजनाओं के जरिए मिलने वाला लाभ अल्पकालिक होता है। इसके बजाय अगर वो लोगों को नौकरी, आत्मनिर्भर बनने का अवसर देते तो वो दीर्घकालिक सामाधान होता।

सब्सिडी की फंडिंग

विशेष लक्ष्यों की पूर्ति के लिए दी जाने वाली सब्सिडी अहम होती है। जिन लक्ष्यों के लिए सब्सिडी दी जाती है, उन्हें पूरा करने के बाद इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। बिजली व्यक्ति की हर दिन की जरूरत है औऱ सब्सिडी के तौर पर इसकी कुल खपत को माफ कर देना किसी भी रूप में सही नहीं है। ये केवल एक चुनावी चाल है। अक्सर लोग राजनीतिक पार्टियों के इसी बहकावे में आ जाते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि मुफ्त की इस सब्सिडी को दूसरे तरीकों से वसूल किया जाता है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में इस तरह की फ्री सुविधा के कारण सरकारी खजाने पर बहुत भार पड़ता है।

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री ने 2021-22 के बजट में ऊर्जा क्षेत्र के लिए 3,227 करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा था, जिसमें से 3,090 करोड़ रुपए तो केवल बिजली सब्सिडी के लिए आवंटित थे। इस तरह से यह कुल आवंटन का 96 प्रतिशत और पूरे बजट का 4.4 प्रतिशत है। अगर उपभोक्ता अपने इस्तेमाल की गई बिजली का पैसा देता तो इस फंड का इस्तेमाल किसी दूसरे कार्यों में किया जा सकता था।

पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य में ऐसी योजनाओं के प्रभाव

पंजाब जैसे बॉर्डर स्टेट में विकास के अवसरों और प्रक्रिया का विशेष महत्व होता है। पंजाब की 553 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जो पाकिस्तान से लगती है। ड्रग माफिया से पंजाब लंबे वक्त से जूझ रहा है, जिसे सुरक्षित रखने के लिए बहुत अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। राज्य का बजट करीब 6 लाख करोड़ रुपए का है, जो कि दिल्ली से करीब 9 गुना अधिक है। इस हिसाब से पंजाब में बिजली सब्सिडी की लागत का अनुमान लगाया जाए तो वह दिल्ली की सब्सिडी से 9 गुणा, यानी करीब 27,000 करोड़ रुपए होगा।

पंजाब सरकार का इतिहास रहा है कि डिस्कॉम को कम भुगतान करते हुए सब्सिडी देने पर वह अधिक जोर देती रही है। इसका पहले से ही संकट झेल रही स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड पर बुरा प्रभाव पड़ा है। यहाँ उल्लेखनीय है कि 2017 में जब कॉन्ग्रेस ने राज्य में सत्ता की बागडोर संभाली थी, तभी से वह हर वर्ष देय सब्सिडी बकाए का भुगतान करने में विफल रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब पर पहले से ही 10,000 करोड़ रुपए के बिजली का बिल बकाया है, जिसका अभी तक कंपनियों को भुगतान नहीं हुआ। वहीं, सीएम चरणजीत सिंह चन्नी की लुभावनी घोषणाओं के कारण चालू वित्त वर्ष के लिए सब्सिडी बिल बढ़कर 20,016 करोड़ रुपए पर पहुँच गया है, जिसमें से अभी तक सरकार ने केवल 7,800 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया है।

ऐसे में अगर AAP इस तरह की नीतियाँ लाती है तो इससे राज्य में कई तरह की अव्यवस्थाएँ पैदा हो सकती हैं। अगर वर्तमान सरकार पहले से ही अपने पुराने वादों को पूरा नहीं कर पा रही है तो आने वाली सरकार मौजूदा बकाया के 1.5 गुना बिल का भुगतान कैसे करेगी? इसका परिणाम यह होगा कि किसी न किसी सेक्टर में महत्वपूर्ण चीजों को छोड़ना होगा, फिर वो चाहे सुरक्षा बजट हो, परिवहन हो या ग्रामीण विकास खर्च हो।

मुफ्त योजनाओं से प्रभावित हो रहा पर्यावरण

उल्लेखनीय है कि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है, जो पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहा है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के 1998 से 2018 तक किए गए एक रिसर्च के मुताबिक, राज्य के 22 में से 18 जिलों में धरती का जलस्तर हर साल करीब एक मीटर नीचे जा रहा है। बावजूद इसके, राज्य के लोग कम पानी वाली फसलों की जगह अधिक पानी वाली फसलों पर निर्भर हैं। अब अधिक पानी के लिए अधिक बिजली की जरूरत होगी और मुफ्त बिजली से अधिक ऊर्जा का शोषण होगा। इससे भूजल का स्तर भी नीचे गिरेगा।

हालाँकि, देश की राजधानी दिल्ली एक कृषि आधारित राज्य नहीं है, फिर भी इसका भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। एक स्टडी में दावा किया गया है कि एनसीआर में ग्राउंड डिस्प्लेसमेंट के कारण 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को खतरा है। रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी में भूजल की कमी की खतरनाक दर से शहर के कुछ हिस्से ढह सकते हैं। हालात ये हैं कि दिल्ली में जलापूर्ति में कुप्रबंधन के कारण पानी की जरूरतों को सबमर्सिबल मोटर्स के जरिए पूरा किया जाता है और यह वॉटर टैंकर की तुलना में अधिक सुविधाजनक है।

दिल्ली में कुछ खास नहीं कर पाई ‘AAP’

दिल्ली की हालत खराब है। यहाँ अरविंद केजरीवाल ने जनता से वादे तो बड़े-बड़े किए, लेकिन उसे पूरा करने में वो नाकाम रहे। हालात तो ये हैं कि जब केजरीवाल अपनी पहल के बारे में भी बात करते हैं तो उनमें से किसी में भी उचित विकास नहीं दिखा। MCD दिल्ली सरकारी की ओर से होने वाली फंडिंग की कमी से जूझ रही है। यहीं नहीं AAP जिस स्कूली व्यवस्था को देश में सबसे अच्छी बात रही है, वो भी सिर्फ एक छलावा है। हकीकत ये है कि आम आदमी पार्टी अपने आधे से अधिक चुनावी वादे पूरे कर पाने में नाकाम रही है। केजरीवाल ने 2019 तक 1000 से अधिक इलेक्ट्रिक बसों को दिल्ली में चलाने का वादा किया था, लेकिन अभी तक केवल एक ही बस रोड पर आ सकी।

केजरीवाल यमुना को दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी और दिल्ली को लंदन बनाने का वादा भी कर चुके हैं। जबकि, हकीकत ये है कि अरविंद केजरीवाल के कारण ही बीते तीन सालों से दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है।

मुफ्तखोरी समस्या है, समाधान नहीं

गौरतलब है कि किसी भी राज्य की पूरी आबादी के लिए मुफ्त योजनाओं को व्यवहारिक नीति नहीं माना जा सकता है। वोटों और कैम्पेन फंड के बदले किसी समुदाय पर एहसान करना विधायकों के लिए बहुत कम या फ्री होता होगा, लेकिन इसका भार सरकारी खजाने पर ज्यादा पड़ता है। यह सब राजनीति से प्रेरित फैसलों के कारण होता है।

इस बार पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक पार्टियों द्वारा किए गए मुफ्त के वादे पर संज्ञान लेते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग को नोटिस भेजा था। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसने पहले ही चुनाव आयोग को इस तरह के आचरण से बचने के लिए दिशा-निर्देश बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन आयोग ने केवल एक बार ही राजनीतिक दलों के साथ उनकी राय जानने के लिए बैठक की।

उल्लेखनीय है कि अगर सच में आम आदमी पार्टी जनता की भलाई के लिए काम करना चाहती है तो अपनी बेईमान मानसिकता छोड़कर जनता की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करे न कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा दे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *